बुधवार, 27 सितंबर 2023
हिंदी एक औघड़ भाषा
रविवार, 17 सितंबर 2023
वासुदेव शरण अग्रवाल : चयन और मूल्यांकन की दो दृष्टियाँ
शनिवार, 2 सितंबर 2023
अमृत-क्रांति-संतान : मंगल पांडेय
हे भारत के प्रथम पूज्य ! हे वीर पुत्र धरती के !
प्राण वायु तुम, महाकाय इस भारत की संस्कृति के ।
सुप्त धरा में जीवन-रस के संचारक, हे स्वातंत्र्य प्रणेता !
नव भारत के भाग्य-विधाता प्रथम क्रांति के नेता ।
धर्म-राष्ट्र-संस्कृति के रक्षक प्रथम पूज्य वलिदानी !
महाकाव्य से विशद चरित की कैसे कहूँ कहानी ?
रज कण की या कहूँ वृंत की या हिमवान-सरित की
किस-किस की भाषा में विरचित तेरे वीर चरित की ?
भारत के कण-कण से मुखरित त्तेरी सुरभित गाथा
सुन हिमवान द्रवित होता मृगराज झुकाते माथा ।
क्रांति, तेज, जय की यह आरोहित त्रिगुण पताका
लहराती नभंडल में हो भले दिवस या राका ।
मंगल यश के उद्गाता तुम जननी के शृंगार
कुसुम नहीं जीवन का तुमने चढा दिया था हार
बैरकपुर की चिनगारी तुम बने अग्नि विकराल
मंगल पांडेय नाम तुम्हारा अंग्रेजों के काल ।
राजा की संतान नहीं तुम नहीं मुगल की शान
तुममें बसती सोंधी माटी खेती और किसान
सेना के तुम वीर सिपाही भारत माँ की आन
अट्ठारह सौ सत्तावन के अमृत-क्रांति-संतान ।
तीस वर्ष की अल्प वयस में होकर तुम कुर्बान
पराधीनता महातिमिर के बने मध्य दिनमान
राष्ट्र प्रेम से जग-मग जीवन भारत-भाग्य-विहान
कोटि-कोटि भारत-जन के हित तुमने किया प्रयाण ।
सुन ललकार तुम्हारी रण की जाग उठा था जन-जन
गूँज उठी भारत की धरती तलवारों से झन-झन
अवध और पंजाब उठे थे बाँधे सिर पर काल
गांव-गांव में डगर-डगर में जला क्रंति का ज्वाल ।
वीर कुँवर सिंह तत्या नाना जागी सब में आन
क्रांतिगीत जब तुमने गाया देकर के बलिदान
मेरठ झांसी और कानपुर गए सभी थे जाग
कांप रहा था ईस्ट इंडिया भडकाई जो आग ।
शाह जफर को ललकारा जब गा कुर्बानी गीत
तख्त हिला था लाल किला का जन-जन की थी जीत
यमुना का पानी खौला था धँसक गई थी भीत
जनता के शासन की आई तब भारत में रीत ।
भारत भर में बजा हुआ था दुंदुभियों का साज
हुँकारों में बदल गई थी जनता की आवज
काँप उठा सुन लंदन पेरिस वर्लिन रोमन राज
सहम गया क्रांति-विगुल सुन विक्टोरिया ताज ।
शनिवार, 8 जुलाई 2023
रोहिणी
रोहिणी बीत गई . कल मृगशिरा का अगमन हो गया . भयंकर ताप से तपने वाली नक्षत्र . बाबा कहते थे इसका तपना अच्छा है यह जितना तपेगी उतना ही अगली फसल के लिए अच्छा होगा. पर हमारी पीढी तो बस इतना जानती है ' उफ्फ इतनी गर्मी! इतनी तपन!" टीवी और मोबाइल के स्क्रीन पर चमकता तापमान देखकर कुछ एसी का तापमान एक प्वाइंट और कम कर लेते हैं तो कुछ कोल्ड ड्रिक या आइस्क्रीम की दो नई बोतल या बार के जुगाड में लग जाते हैं. नक्षत्रों के चक्कर में हमें क्यों उलझना? महानगर की सुविधा सम्पन्न जिंदगी में क्या हमारे लिए मृगशिरा क्या अर्द्रा ? सब बराबर .
अर्द्रा में भींगा मन
आर्द्रा मेरी दूसरी पसंदीदा नक्षत्र है। कालिदास के यक्ष की रामटेक की पहाड़ियों पर मेघ आषाढ़ के पहले दिन भले आ जाते हों: