लड़कियाँ बनती हैं घरौंदे
रखती हैं
एक अदद चूल्हा
मिट्टी का,
लकड़ियाँ , चारपाई
छोटे छोटे बर्तन-भाड़े
फूस और मिट्टी के
देखती है स्वप्न
रचने का अपना घर ,
लड़कियाँ बनती हैं पुतली
जोड़-गांठ कर फटे-पुराने कपडे
सजाती हैं उसे गहनों से
बनती हैं दुल्लहन
रचती हैं ब्याह--
स्वप्न भविष्य का
लडके बाराती बनते हैं
खाते हैं महुए के पत्तलों में
भांति भांति के व्यंजन
बिदा करते हैं दुल्हन
बर्तन-भाड़ों के साथ
लड़कियाँ अगोरती हैं
खाली घर ओसारे
आंगन में चारपाई से सर टिका
सो रहती हैं जैसे सोईं हों मांएं
बाद बेटी की बिदाई के.
रखती हैं
एक अदद चूल्हा
मिट्टी का,
लकड़ियाँ , चारपाई
छोटे छोटे बर्तन-भाड़े
फूस और मिट्टी के
देखती है स्वप्न
रचने का अपना घर ,
लड़कियाँ बनती हैं पुतली
जोड़-गांठ कर फटे-पुराने कपडे
सजाती हैं उसे गहनों से
बनती हैं दुल्लहन
रचती हैं ब्याह--
स्वप्न भविष्य का
लडके बाराती बनते हैं
खाते हैं महुए के पत्तलों में
भांति भांति के व्यंजन
बिदा करते हैं दुल्हन
बर्तन-भाड़ों के साथ
लड़कियाँ अगोरती हैं
खाली घर ओसारे
आंगन में चारपाई से सर टिका
सो रहती हैं जैसे सोईं हों मांएं
बाद बेटी की बिदाई के.