परिंदा कोई तुम्हारे आँगन का
नहीं मार सकता पर
मेरे आँगन में ,
मूंद दीं बिलें चीटीयों की
कायम करती थी
जो बेवजह आवाजाही
तुम्हारे घर से मेरे घर की ,
रोशनदानों पर
जड़ दिए मोटे शीशे न आ सके नापाक हवा
तुम्हारे दरख्तों की
मुझ तक
जड़ दिए मोटे शीशे न आ सके नापाक हवा
तुम्हारे दरख्तों की
मुझ तक
मेरे घर मेरी आद-औलादों तक ,
फिर, कैसे रोया
फिर, कैसे रोया
मेरा नवजात बच्चा
तुम्हारे बच्चे की आवाज में ?
अरे! अब हँस रहा
तुम्हारा बच्चा मेरे बच्चे की तरह.
क्या महफूज़ हैं ,
सच-मुच हमारी-तुम्हारी सरहदें !