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रविवार, 10 नवंबर 2024

कुबेरनाथ राय का सहित्य -चिंतन

 

कुबेरनाथ राय ने भारतीय साहित्य पर दो दृष्टियों से विचार किया है µ मूल्यपरक और नृतात्त्विक। मूल्य की दृष्टि से साहित्य में दो प्रमुख तत्वों को ध्यान में रखना आवश्यक है µ रस और भूमा। रस को उन्होंने अपने में डूब जाने µ समाधिस्थ हो जाने की स्थिति का कारण माना है। वे रसविज्ञानियों द्वारा निर्मित रस से आनंद के संबंध µ' रसोवैसः' µ को स्वीकार करते हैं। उनके अनुसार आनन्द का ही एक रूप मोक्ष है। इसे वे भारत की चिन्मय सत्ता का प्रतीक मानते हैं। मोक्ष और निर्वाण की अलग-अलग व्याख्याएँ दी गई हैं। उनके अनुसार इसके लिए मृत्यु का रहस्य नहीं है। यह इसी जीवन और इस लोक में भी किया जा सकता है। नृत्य , गीत , कला आदि के माध्यम से। वे इसके प्रमाण में 'अभिज्ञान शाकुंतलम्' के एक अंश 'अहोल्ब्ध उत्सव निर्वाणम्' का उल्लेख करते हैं। उनके अनुसार यहाँ उत्सव निर्वाण का अर्थ आखों का विनाश नहीं होना चाहिए। यहां इसका अर्थ है चरम सुख या महासुख की प्राप्ति। इसका आधार लौकिक है- शकुंतला का रूप। दूसरा तत्व भूमा का अर्थ वे विस्तृत होने की इच्छा मानते हैं। उन्हें साहित्य के लिए आत्मविभोरता और भूमा का विस्तार दोनों का रस आवश्यक लगता है। वे इन दोनों से समन्वित साहित्य को ही श्रेष्ठ साहित्य मानते हैं। उन्होंने कहा कि एकता को समन्वय का आधार माना जाता है। इस रूप में वे )ळिप्रधान कहते हैं।

कुबेरनाथ राय भारतीय साहित्य की तीन कोटियाँ हैं µ रसप्रधान , ) ळी तथा रसप्रधान और )ळीप्रधान। बिहारी और गालिब को पहली बार कोटि में रखा गया है। उनके अनुसार ये दोनों ही रस प्रधान कवि हैं। दूसरी कोटि में उन्होंने व्यास वाल्मिकी , सुर कबीर और तुलसी को धारण किया है। ये रस , भूमा और शील से समन्वित)ळिप्रधान कवि हैं। वे इस वर्ग के सिद्धांत को राष्ट्रीय शील के प्रशिक्षण की दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हैं। तीसरी कोटि में वे कालिदास , सूरदास और रवीन्द्र नाथ टैगोर शामिल हैं। ये रस और )ळी दोनों तत्त्व की एक साथ उपस्थिति हैं। उन्होंने इस सूची में कहा है कि कवि के छोटे से बड़े कलाकार के अस्तित्व का आधार न जीवित कवि की प्रकृति की पहचान का आधार माना जाता है। उन्होंने वाल्मिकी , व्यास , कालिदास , भवभूति , जयदेव , तुलसी से लेकर आधुनिक विद्वानों में प्रेमचंद , दिनकर और मुक्तिबोध तक के साहित्य पर विचार किया है, शंकरदेव और रवीन्द्रनाथ ठाकुर जैसे हिन्दी से लेकर अन्य विद्वानों ने भी अलग-अलग सिद्धांतों पर विचार किया है। है.