सोमवार, 20 अक्टूबर 2014

भाषानाटकम्


प्रथमोध्यायः 

नटी : हे स्वामी! इधर पार्श्व में क्या हो रहा है ?
नट:  हे सखी इधर (मुखर्जी नगर में ) हिन्दी को लेकर संघ लोक सेवा आयोग की नीतियों की विरुद्ध  आंदोलन हो रहा है …
नटी : यह आंदोलन क्या होता है, प्रिय!
नट : प्रिये ! यह नए युग का यज्ञ है।
नटी : फिर, तो इसमें यजमान पुरोहित भी होंगे ?
नट : तुमने ठीक समझा । वह जो शित-केशी सौम्य मुख वाले सज्जन सबके माध्य में बे स्थित हैं, वे  हीं पुरोहित हैं ।
नटी : और आचार्य ?
नट : वह सामने स्थित प्रौढ़ सज्जन जो धान की हरित बालियों की बीच झरंगा क़ी पकी हुई पिंगल  बाली कि तरह शोभा पा रहे  हैं, वही इस यज्ञ की आचार्य हैं ।
नटी : इसके यजमान कौन हैं ?
नट : बेरोजगारी रूपी कीड़े द्वारा चाल दिए गए जड़ो वाले निरस वॄक्ष की चाल कि तरह शुष्क चेहरे वाले वे युवा ही उसके यजमान हैँ।
नटी : हे प्राणनाथ! इस यज्ञ का उद्देश्य क्या है ?
नट : हे भ्रामरी की तरह मधुर गुंजार करने वाली मेरी प्राण प्रिये ! यह अधुनिक राज सूय यज्ञ है ।
नटी: इसके सम्बन्ध में सुनकर मुझे उत्सुकता  हो रही है, मुझपर अनुग्रह करके इसकी संबन्ध में विस्तार से बताएँ ।
नट : यदि तुम इतनी उत्सुक हों तो सुनो..........

(नेपथ्य से)
यह आंदोलन अपना हित साधन करने का रास्ता है । इसका किसी भाषा से कोई सम्बन्ध नहीं । कुछ बुद्धिजीवी भी उसके साथ साथ हैं और स्टैटस बता रहे हैं की कुछ अध्यापक भी । पर, मुझे तो नहीं लगता कि ये कोई बहुत मह्त्वपूर्ण है क्योंकि ये सत्ता-व्यवस्था  में घुसने की होडा-होड़ी भर है। न तो इसका हिन्दी से कोई लेना देना है न हिन्दी भाषियों से।  यदि यह तथ्य है कि नई पद्धति लागू होने से पहले हिन्दी-भाषी और हिंदी माध्यम के छात्र अधिकारी बनाते रहे हैं तो यह भी तथ्य हैं की उन्होंने हिंदी भाषा के विकास में धेले भर का योगदान नहीं दिया । और मेरा यह भी दावा है की कल व्यवस्था के अंग बन जाएंगे तो वही करेंगे जो आज व्यवस्था कर रही  है। हिन्दी के लिए आंदोलन करने वाले लोगों पर लाठीयां बरसाएंगे ।
            रही बात गुरुजनों की तो पहले अकादमिक जगत में अंग्ऱेज़ी की बरचस्व को तोड़ कर दिखाएँ और पश्चिम (यूरोप और अमेरिका) के आतंक से निजात पा लें, तो हिंदी क्या भारत की हर भाषा खुद-ब-खुद अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ सथान पा लेगी। अन्यथा भाषा की राजनीति  में सर  फोड़ौव्वल  के अलावा कुछ नहीं  मिलने वाला

(एक पागल  का बड़बड़ाते  हुए तेजी से  प्रवेश।  एक अदृश्य (दैवीय) स्तम्भ में बंधी स्त्री के पास आकर ठहर जाता है और अबतक मौन साक्षी की तरह सारे उपक्रम क़ो निहारने वाली वह स्त्री आचनक बोल उठती है)

स्त्री  : हा हन्त !
मुझे राजनीति की शामिधा और क्षेत्रवाद के घी  की सम्मिलित अग्नि में जाला कर  भष्म करने की निमित्त इतना कपटाचार ? ओह, स्वार्थ-सिद्ध आवाहन मन्त्रों को सुनकर यह अग्नि  अपनी लाल लाल जिह्वा कितनी तेजी से लपलपा रही हैं , लगता है, यह दुष्ट अग्नि यज्ञ की पूर्णाहुति से पूर्व ही बालि-पशु के रूप में यूप से बंधी हुई मुझे इस शाल-स्तम्भ के  साथ ही जला देगी ।
(इस तरह कहती हुई वह स्त्री अचानक आग के घेरे में आजाती है ओर उसे बचाने की उपक्रम में पागल भी उस आग में कूद  जाता है।)

समवेत स्वर में : हे पाठक गण ! अग्नि देव हमारे द्वारा श्रद्धा पूर्वक दी गयी यह जोडा बलि स्वीकार  करे और इससे प्रसन्न होकर वह हमारी आपकी और सभी अभिजात जनों की प्रिय आंग्ला भाषा नाम्नी सभ्य, सुसंस्कृत और और सभी कार्यों में दक्ष कन्या क़ो स्वस्थ और समृद्ध बनाएं तथा सौंदर्य एवं लावण्य युक्त करे। वह वैसे ही हम सभी को प्रिया हो, जैसे द्रोपदी अपने पांचो पतियों की प्रीया थी ।



                             इति श्री भाषा नाटकस्य प्रथमो अध्यायः । 

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