हमने
पहचान ली हैं
सलवटें
समय की
सफेद
चादर में छिपी हुईं
हम
मारे जाएँगे,
हमने
देख लिया है
अमृत
पात्र से ढका हुआ
विष-कुंभ
हम
मारे जाएंगे,
कर
लिया है हिसाब
साँसों, धड़कनों और फेफड़े में भरी
हवा का
उनके
और अपने
इसलिए
हम मारे जाएंगे
इस
तमाम करणों के बीच
क्या
सच-मुच जिंदा हैं हम
इस
डर के साथ कि हम मारे जाएँगे ।
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