वह बेजुबां नहीं
हिल रही थी उसकी जीभ
वह चुप है
क्योंकि नहीं चाहता
बोलना
वह नहीं है गरीब
ढकी है उसकी देह
कपडे से,
ये बात और-
नहीं है तहजीब
लपेटे है लुंगी
फटी-मैली
अपने तन पर
बजाय पहने के
सलीके से ,
और भूखा ..
बिलकुल ग़लत
खर रहा था घास
कल ही
पिछवाड़े मेरे बंगले के
है शाकाहारी जो,
बेहद बदमाश ..
कुंकियता रहा फिर भी
दरवाजे पर मेरे
पहरेदारी में लग गई
ठण्ड
नाहक मेरे डौगी को।
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