खुला-खुला-सा कुछ
खुली हवा के लिए
बैठीं हैं औरतें
खिडकियों पर
ढांपे हुए मुंह
ले रही हैं खुली धूप
आंगन में घर के
खुलासे के लिए
बातों की
खड़ी हैं
लगे हुए ओट
किवाड़ की
कानों में खुसुर-फुसुर
कहनी हैं बातें
खोलकर कर अपना मन
मर्दाने दालान की ओर
टिकी हुई ऑंखें
रह जातीं खुलीं-खुलीं
खुला-खुला-सा सबकुछ है
चाहती हैं फिर क्यों
औरतें
हो अपने भी जीवन में
खुला-खुला-सा कुछ ।
खुली हवा के लिए
बैठीं हैं औरतें
खिडकियों पर
ढांपे हुए मुंह
ले रही हैं खुली धूप
आंगन में घर के
खुलासे के लिए
बातों की
खड़ी हैं
लगे हुए ओट
किवाड़ की
कानों में खुसुर-फुसुर
कहनी हैं बातें
खोलकर कर अपना मन
मर्दाने दालान की ओर
टिकी हुई ऑंखें
रह जातीं खुलीं-खुलीं
खुला-खुला-सा सबकुछ है
चाहती हैं फिर क्यों
औरतें
हो अपने भी जीवन में
खुला-खुला-सा कुछ ।
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