झुक जाता सिर
रखता हूँ जब भी कदम
देहरी पर
मां का दुलार
दादी की नाम आंखे
बाबा के उठे हुए हाथ
आ टिकते सब
बस एक देहरी पर
चल-चलाई आँखों से
विदा करती मां
वापसी की उम्मीद में
हुलास पड़ते ठिठके कदम
लौटते हुए देहरी पर
यह कोई हिस्सा नहीं
घर के भूगोल का
वजूद मेरा
मेरे होने का
मेरे घर का
सब कुछ टिका है
बस एक देहरी पर .
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