वक्त
सुनाता रहा बोलना
शब्द-प्रतिशब्द
टटोलता रहा आहट
हर एक पद-चाप की
झांकता रहा
हर नीम अँधेरे कोने में
पर
वक्त फिसलता रहा
धीरे-धीरे
बिना किसी शब्द
बिना आहट
बिना पहचान .
सुनाता रहा बोलना
शब्द-प्रतिशब्द
टटोलता रहा आहट
हर एक पद-चाप की
झांकता रहा
हर नीम अँधेरे कोने में
पर
वक्त फिसलता रहा
धीरे-धीरे
बिना किसी शब्द
बिना आहट
बिना पहचान .
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