जिन्दग़ी के हर मोड़ पर
ठहर कर खोजता हूं
वह चेहरा
छोड़ आया जिसे
बहुत पहले
बहुत पीछे
बहुत दूर
खोजने की जिद्द में उसे
खोता हूं खुद को ही हर दफ़े
निकल जाता बहुत दूर अपने से...
हर दफ़े खोता हूं
भीड़ मेंउस-जैसे अनेक-अनेक चेहरों की...
हर दफ़े
अनपाया-अनचीन्हा रह जाता
खोया हुआ भीड़ में
वह चेहरा
अपना ही .
1 टिप्पणी:
nishchay hi yah kavitayen apne samay ka sachcha dastawej hain. qbahaut achcha RAJIV..
एक टिप्पणी भेजें